Saturday 12 April, 2008

kanha

जाने कहा चले गए हो
के दरस दिखाते नही हो
वो मुरली तेरी बुलाती हैं तुझको
माही भी मनाती हैं तुझको
हर आहट मेरी पुकारे तुझको
जाने कहा चले गए हो
के दरस दिखाते नही हो
सावन मैं मोर अब नाचते नही हैं
पक्षी भी अब गुनगुनाते नही हैं
पवन भी मीठे राग सुनाती नही हैं
झरने भी गीत गाते नही हैं
बरखा भी अब चम चम आती नही हैं
जाने कहाँ चले गए हो
के दरस दिखाते नही हो
वन लता ये सूनी हैं अब तोह
यमुना भी गुंजन करती नही हैं
aखिया चम चम नीर बहाए
मोर का पंखा हैं राह लगाये
के मोहन आते नही हैं
जाने कहाँ चले गए हो
के दरस दिखाते नही हो
बाट निहारे अखियाँ हमारी
दिल मैं भी कुछ एहसास न आए
लब सिल गए हैं अब हमारे
बस इक्क आस हैं अब टोह प्यारे
के आयेंगे एक रोज मोहन हमारे
जी भर के दरस होंगे तुम्हारे
उस दिन होंगे सच ख्वाब हमारे
आ जाओ मोहन गिरधारी
मैं टोह टोपे वारी वारी
आ जाओ मोहन गिरधारी