Thursday 8 July, 2010

मोहन मेरे मुरली बजाना प्यार से
मोहन मेरे मोहे बुलाना प्यार से
मूँद आँखें कदम्ब के नीचे
मुरली मन्द मन्द बजाना मोहन रे
मोहे बुलाना मोहन रे
टेढ़ी टाँग पे होना खड़े
अपने अंदाज से लूटना दिल रे
पीला पीताम्बर हवा में लहराए
केसू भी उड़ उड़ कपोल चुने आये
मोहन मेरा जब बन्सी बजाये

Wednesday 7 July, 2010



मेरे श्याम मेरे मुरारी, करूणानिधि मेरे स्वामी
करो माफ़ जितनी भी भूले की हमने
ले लो शरण में अपनी अब तो स्वामी
हम हैं राही भूले तेरे दर के
शरण में लो,कृपा करो , हे नाथ मेरे दया करो
मुझे पानी का कतरा बनाओ
उसे यमुना जी में मिलाओ
यमुना जी में आके अपने चरण लगाओ
मोहे चरणों में अपने समाओ
मेरे श्याम मेरे मुरारी, करुणानिधि मेरे स्वामी

Monday 5 July, 2010

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हे मुरलीमनोहर, हे मेरे बाँके बिहारी
मेरी इतनी सी विनती करो स्वीकार
मुझे चरणों में शरण दो मेरी सरकार
मैं आई हू कान्हा तेरे द्वार
मैं आई हू कान्हा तेरे द्वार
मुझे अपनी शरण में लो सरकार
इस दो रंगी दुनिया में न चाहती हू अब रहना
मेरी दुविधा हटाओ हे कान्हा कृपा कर
कोई तो रास्ता दिखाओ
मुझे कृपा कर अपनी शरण में ले जाओ
कृपा करो कान्हा कृपा करो

Sunday 30 May, 2010

तेरी यादें भी बड़ी अजीब हैं कान्हा जब चाहा नही था चली आई याद तुम्हारी अब चाहते हैं जब यादों को तेरी बड़ी इतराती हैं यादें तेरी, न आती हैं यादें तेरी तेरी यादों की आती हैं याद कैसी रुलाती थी, कैसे सताती थी हमको तेरी यादें ओह मेरे श्याम अब तो तेरी यादों में रहने को करता हैं मन पर यह भी कम नही कुछ श्याम जब चाहो न आती हैं तब श्याम अब तो यादें तेरी हमको सताएं तेरी यादों की याद बड़ी आये

Wednesday 19 May, 2010

बरसी बूंदे बरखा की,बूंदों में बरसा बृजकुंवर का प्यार
आप आये न आये मोहन, दे दिया मेको अपना एहसास
घनन घनन मेघा बरसे,श्याम घटा चड आई
श्याम घनो में घनश्याम नजर मोको आये
बंसी बजाते हुए श्याम मोहे अपना एहसास दिलाये
इस विरह की अग्नि में, यह बूंदे मोहे और जलाये
घनश्याम इन बादलो के संग, इन बूंदों के संग
बोलो न श्याम तुम क्यों न चले आये
आये भी तो क्यों छिप बैठे रहते हो श्याम
मंद मंद मुस्काते हो,हिये बहुत तडपाते हो
दिल की व्यथा कही नही जाती.............
क्यों श्याम इतना सताते हो?.............

Monday 17 May, 2010

कान्हा ओह कान्हा, तू कहा जा छिपा
इस कदर छिप के हैं बैठा के
सामने होकर भी सामने तू नही आता
पर्दों में रहने की आदत हो चली हैं तेरी
या हमको ही पर्दों में रखने की
कुछ तो बताओ,कुछ तो राज अपने हमको समझो
एह कान्हा कुछ तो हम पर कृपा की दृष्टि बरसाओ
हमे एक ही झलक अपने दरस तो करो
मोहे कान्हा वृन्दावन बुलाओ
या तुम मेरे पास चले आओ

Thursday 13 May, 2010

किस तरह करू मैं शुक्रिया तेरा कान्हा किस किस बात के लिए करू शुक्रिया कान्हा तू पास हैं यह एहसास हैं, दूरी का रहता फिर क्यों आभास है तूने दिया अपने होने का एहसास मुझको करू किस तरह इस बात का शुक्रिया तुझको तेरी दी सांसें नाम तेरा ले, तुझको ही पुकारें, तुझको ही निहारें ओह साँवरिया मांगे भी कुछ तो तुझी से हैं मांगे तुझ बिन जाए कहा यह दासी सुन लो विनती,मंजूर करो अर्जी हमारी तेरे बिन जाए कहीं तेरी यह दासी

Monday 10 May, 2010




कान्हा रे ओह कान्हा रे,
लगन जो लागी हैं अब तुम संग
उसे सदा निभाना रे, मेरे कान्हा रे
छोड़ना चाहू भी अगर साथ तेरा
छोड़ना मोहन तुम हाथ मेरा
आये चाहे कितने भी दुःख मेरे श्याम
रहे सदा मुझको तेरा ही ख्याल
आये चाहे खुशियों की कोई बहार
तुम रहना सदा संग ही मेरे नाथ
रटु हर पल मैं तो तेरा ही नाम
इतनी ही विनती करू तुमसे श्याम
रहना मेरे मन में सदा मेरी सरकार
करती हु विनती तुझे घनश्याम


Monday 3 May, 2010

कान्हा रे किसी के संग ऐसा करियो
दे कर प्रीत प्यारी,
दिल में जगा कर एहसास हजारो
फिर उसे उस से जुदा मत करियो
गोपिया रोई बिलखी हर और नजर उन्हें तू ही आये
हर पल वो अपनी सोच में बस तुम्हे ही ले जाए
तुम्ही से करें वो साची प्रीत कान्हा
तू काहे उन्हें छोड़ कहीं चला जाए
तेरी आस लगा के वो वन वन घूमे
अभी जायेंगे मुरली मनोहर
यही आस बस मन में लगायें
रैन पड़े तो चैन खो जाए
आता होगा कृष्ण कन्हैया रास रचाने
यही आस मन में दबाएँ
हर घडी हर पल हर लम्हा करें इंतज़ार तुम्हारा
आजा रे ओह प्यारे कान्हा
अब तो दरस दिखा जा

Saturday 1 May, 2010



कान्हा देखे बहुत ही रंग इस दुनिया के
पर तेरे रंग सा गहरा कोई रंग नही
यह दुनिया कहने को बहुत ही प्यारी हैं
प्यार इसमें भी कुछ कान्हा कम नही
मगर सच कहती हू कान्हा
तेरे प्रेम जैसा प्रेम हरगिज नही
तेरे प्रेम का कण भी हैं कहीं
मुझे अपने प्रेम पाश में बांधो हरि
भटकाओ इधर उधर
रख लो मुझे अपने संग ही हरि

Tuesday 27 April, 2010



प्यारे मोहन की प्यारी हैं हर इक अदा
मुख पे पर्दा भी कर दे तो बनती अदा
तेरे दीवानों की हालत ना तुझसे छिपी
अब तो पर्दे को बेपर्दा करदो हरि
चलो आये पर्दों को हटाते हुए
अपनी टेडी चाल और मन्द मन्द मुस्काते हुए
आये विराजो मेरे दिल में मेरी सरकार
कर दो कृपा मुझपे, बुला लो वृन्दावन ओह श्याम
बुला लो मोहे तुम या, खुद ही चले आओ
करो कुछ तो कृपा अब मेरे श्याम

Sunday 25 April, 2010



ऐ श्याम साँवरे, मेरे दिल में बसा हैं तू आन साँवरे ,

दिल में बसकर तू पूछे मुझसे श्याम
क्या हैं दिल में तेरे मुझको बता
हर बात हैं तुझसे ही मेरी शुरू
तू ही हैं मेरी हर बात साँवरे
जरा दर्शन देने आजा मेरे साँवरे
मेरे दिल में बसा हैं तू आन साँवरे
अपने भक्तो से मुझको तूने मिलाया
मेरा जीवन ही तूने धन्य बनाया
मेरे जीवन में लाया अपने नाम का प्यार
मांगू यही मैं तुझसे वरदान
तेरा नाम रहे जीवन में सदा
भूलो ना बिसरू इक पल भी इसे
मेरा जीवन ही बन जाए तेरे नाम का प्यार
दर्शन देने इक बार आ जाओ मेरी सरकार

Saturday 24 April, 2010

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घनश्याम तुम्हे ढूँढने जाए कहाँ कहाँ !
अपने विरह की आग बुझाए कहाँ कहाँ !!

तेरी नजर में जुल्फों में मुस्कान में !
उलझा है दिल तो छुडाये कहाँ कहाँ !!
घनश्याम तुम्हे ढूँढने...................

चरणों की खाकसारी में खुद ख़ाक बन गये !
अब ख़ाक पे ख़ाक रमाये कहाँ कहाँ !!
घनश्याम तुम्हे ढूँढने...................

जिनकी नजर देखकर खुद बन गये मरीज !
ऐसे मरीज मर्ज दिखाए कहाँ कहाँ !!
घनश्याम तुम्हे ढूँढने...................

दिन रात अश्रु बिंदु बरसते तो है मगर !
सब तन में लगी जो आग बुझाए कहाँ कहाँ !!

घनश्याम तुम्हे ढूँढने जाए कहाँ कहाँ !
अपने विरह की आग बुझाए कहाँ कहाँ !!





By:Kanha ka pyara!

Friday 23 April, 2010



कान्हा रे ओह कान्हा रे
बड़ा तू लागे प्यारा रे
सीस पे सोहे तेरे मोर मुकुट
कानो में झूले कुण्डल प्यारे
केसुओं की लटे उड़ उड़ चूमे गाल तुम्हारे
नयना तेरे मतवारे
तेरे प्यारो के प्राण लिए जाए नयना प्यारे
पग में छम छम नुपुर बाजे
गले वैजन्ती माल साजे
अधरों में छाई मुस्कान तेरे
तेरे भक्तो का हिये लिए जाए
कान्हा रे ओह कान्हा रे बड़ा तू लागे प्यारा रे

Wednesday 21 April, 2010



कहा जाए छिपे बैठे हो कान्हा
कहा चले गए हो के सामने आते ही नही
सामने होकर भी दर्शन ना देते हो
इतने करीब हो पर दूरी इतनी के दिखाई भी ना पड़ते हो
कहा जाए छिपे बैठे हो?
इन नैनों की प्यास का भी कुछ करो ख्याल
कुछ तो करिये हमारा ख्याल
अपनी कृपा की इक नजर ही कर दो
मेरा हाथ पकड़ शरण में अपनी रख लो

Tuesday 20 April, 2010

कान्हा रे ओह कान्हा रे
आप तो जाए बसे हो मथुरा
ध्यान कुछ हमरा भी धरो
आकुल व्याकुल फिर रही हैं
कोई तो सन्देश अपना दो
हवा के झोंके में भी आहट तुम्हारी लगती हैं
फूल और पतियों में भी तुम्ही को ढूँढती फिर रही हैं
अब तो आ जाओ ध्यान कुछ हमरा भी करो
रोज़ तुम्हे देखने की तुमसे बात करने की आदत हैं हमारी
अब यू मुख ना हमसे मोड़ो
काहे जाए बसे हो मथुरा
अपनी बृज गोपीन का ध्यान तो धरो

Sunday 18 April, 2010

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मेरे श्याम मेरे प्यारे,मधुसुदन बृजराज हमारे
बड़ा प्यारा दिया तोहफा तूने मेरी सरकार
करू कैसे मैं तुम्हारा वन्दन, कैसे करू तुम्हारा गुणगान
हरि एक बार दर्शन देने आ जाओ मेरी सरकार
युगल छवि के दर्शन चाहू,
राधा जू के हाथ तोरी बाँसुरी पकडाऊ
राधा जी बजाये बाँसुरी की तान
तुम करो नृत्य मेरी सरकार
बोले तेरी पायल राधा जू का नाम
हरि आ जाओ दर्शन देने इक बार
हरि आ जाओ हरि आ जाओ

Thursday 8 April, 2010

कान्हा रे ओह कान्हा अब तो आ जा
कब से तेरी राह लगाये,
कब से बाँवरे नयना तुझको बुलाये
अब तो आ जा
मेरा दिल तेरे दर्शनों की हैं आस लगाये
पल पल यह कान्हा तुझको बुलाये
हर पल संग मेरे रहना मेरे कान्हा
बस इसी आस के साथ सर मेरा हर जगह झुक जाए

Monday 29 March, 2010



सुनो ना श्याम हमारे,

तुम तो जानत हो ना तुम हो सखा हमारे
मेरे दिल का हाल भी कुछ छिपा ना हैं तुमसे
क्या चाहती हू? क्या हैं मन में बात समाई
सब तो जानत हो मेरे रघुराई
अपनी कृपा मुझ पर बरसाओ ना
मुझे जैसा तुम चाहो वैसा बनाओ ना
मेरी जिंदगी तेरे हवाले मेरी सरकार
जैसा चाहो वैसा उसे बनाओ ना

Thursday 25 March, 2010



तेरी दी इस प्यारी ज़िन्दगी में कान्हा
तू अपने नाम का रस मिलाना
अपना नाम तू मुझसे हर दम कहलवाना
हरि हरि गाती फिरू,
लबो पे रहे बस नाम तेरे का तराना
तेरे ख्यालो में डूब जाऊ कान्हा
ऐसी कृपा तू मुझपर हर पल बनाना

Monday 22 March, 2010



क्यों आजकल तूने मोहन,

मुझे मुश्किल में हैं डाला
मैंने तो चाहा था बस
तेरे ही नाम का रस
फिर यह क्या मुझपे छा रहा हैं
क्यों हर पल हर घडी हर लम्हा
मेरे दिल को इक अनजाना सा दर्द सता रहा हैं
मेरे मोहन मोपे कृपा करो
अपनी भक्ति का वर मोहे दो
मोहे अपने चरणों में श्याम रख लो
मोपे श्याम इक कोर कृपा की कर दो

Sunday 21 March, 2010



ऐ मेरे श्याम ऐ मेरे कान्हा

कैसी उलझन में मुझे तूने अब डाला

इक पल के लिए भी चैन नही आता
कई ख्यालो से भरा रहता हैं दिल
दासी तुमरी के दिल को चैन क्यों नही आता
ऐसा पहले तो कभी नही हुआ था
क्यों अब यह दिल इतना सताता
हर बात पे तुम्हे याद करना

इक आदत सी मेरी बन गयी हैं
हर उलझन में तुम्हे याद करना तुम्हे ही बुलाना,
ऐ मेरे दोस्त,
मेरी उलझनों को अब तुम खुद ही सुलझाना

Thursday 18 March, 2010

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काश के कृष्ण मैं किसी फूल पे पड़ी ओस की एक बूँद होती
उस फूल की किस्मत के संग मेरी किस्मत भी जुडी होती
उस फूल के भाग्य उसे तेरे चरणों में ला डालते
मैं तेरे चरणों में गिर तेरे चरण पखारती
तेरे चरणों में जा तेरे चरणों में ही जा मिलती
काश के कृष्ण मैं किसी फूल पे पड़ी ओस की एक बूँद होती


Wednesday 17 March, 2010

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"प्रियतम को पाटिया लिखू जो कोए होय विदेश
तन में, मन में, प्राण में, वाको कहा सन्देश"
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा
तेरे नाम से धन्य हुआ अंतर मन मेरा
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा
तेरे नाम की मस्ती हरदम छाए
देखू हरदम रूप छवि तोरी
नैनों में मेरे तू बस जाए
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा
मुझमे भी तो तुम्ही समाए
कैसी हैं फिर यह दूरी
क्यों तेरी याद सताये
क्यों रोम रोम दर्शन को तेरे, मेरा तड़प जाए
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा

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Monday 15 March, 2010

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देख छवि तेरी लुट गयी मैं बनवारी
तेरे रूप ने ऐसा मुझको मोहा
मोहन ही मोहन मैं गाने लगी
मोहन से लग गयी मेरी यारी
मोहन से ही हो बात हमारी
यही अर्ज हर दम मोहन से चाहने लगी
मैं मोहन संग जब भी करू कोई बात
मोहन भी मुझे देता हैं जवाब
मगर मोहन तुम क्यों सामने आते नही
आत्मा की आवाज बन
अन्तर मन में समाए जाते हो
मगर इन आँखों का पर्दा काहे न हटाते हो
क्यों श्याम दरस न दिखाते हो


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हे करुना के सागर,करुना मुझपे भी कीजे
अपनी इस दासी को चरणों में रख लीजे
हर पल चरणों से थारे लिपटी रहू
नित्य थारे चरण पखारा करू
थारे संग संग छम छम बाजू
अपने भाग्य पर झूमु गाऊ
हर क्षण चूमू चरण तिहारे
हर पल रहूँ संग चरणों के थारे
थारे ही गुण गाया करू
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Saturday 13 March, 2010

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हे मेरे कान्हा किस उलझन में तूने आज डाला
मेरा मन बहुत गया था घबरा, कुछ भी नही था सूझ रहा
तुझे देख उलझने सारी मिट जाती हैं
तेरा नाम आते ही जुबान पे,जुबान पे मीठास छा जाती हैं
दिल की धड़कने बड़ जाती हैं, हिये मुस्कुराता हैं
पता नही क्यों तेरी छवि देखते ही मन हर्षित हो जाता हैं
मेरा रोम रोम तेरा नाम गाने लग जाता हैं
कहती हैं मुझे मेरे दिल की आवाज
के कान्हा संग रिश्ता मेरा पुराना हैं
मुझे बस अब कान्हा को बारम्बार बुलाना हैं

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Wednesday 10 March, 2010

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मनमोहन कान्हा मेरे प्यारे,क्यों दिल को यू जलाते हो
ना सामने आते हो, ना छिप पाते हो,
चैन करार छीन हमारा, तुम हमसे क्यों भागे जाते हो
सुनो ना हम सबकी पुकार
आ जाओ वृन्दावन बिहारी तुम सामने आज
प्रेम की फुहारें बरसाओ, हमे अपनी नाम मस्ती में डुबो जाओ
आ जाओ आ जाओ

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