Sunday 1 February, 2009


मोहन ने बंसी मधुर जब बजाई
सभी गोप गोपियाँ भूली सुध बुध
भागी दौडी जैसी,जिस हाल मैं थी
वैसी ही भागी आई
जब पड़ी कानो मैं बंसी की मधुर धुन
कुछ तो कर रही थी श्रृंगार
कुछ ने चदायी थी चूल्हे दाल
कुछ बिलों रही थी माखन
सब काज किये उल्टे पुल्टे
किसी ने सुन धुन बंसी की
काजल की जगह लगाया सिन्दूर
सिन्दूर की जगह लगा लिया काजल
जब पड़ी मोहन की बंसी की रागिनिया कानो मैं
किसी ने घाघर की जगह दुप्पट्टा लिया
और दुप्पटे की जगह औड ली घाघर
सब गोप गोपियाँ सुन मधुर धुन बंसी की
सुध बुध अपनी बिसरा बेठी
चूल्हा जलता शोड़ मोहन के पास आ बेठी
सब लोक लाज त्याग जिस हाल मैं थी
उसी हाल मैं आ बेठी
दधी माखन सब भूल गया
मोहन की बंसी मैं खुद को बिसरा बेठी
मोहन हमे भी वो बंसी की तान सुना दे
हमे भी गोप गोपियों सी तेरी दीवानी बना दे
मोहन सुना दे सुना दे वो बंसी की तान
जिसमें बिसरा दूँ मैं अपना आप
दीवानी बन जून तेरी इस कदर
रहे न कुछ ध्यान,न खबर
बस तू ही रहे जेहन मैं हमारे
आ जा मोहन सब राह तेरी निहार रहे

1 comment:

Anonymous said...

बहुत प्यार भजन है। यदि इसे संगीत देकर गाया जाय तो कर्ण प्रिय होगा।

आपके चिट्ठे में कई हिन्दी की चिट्ठियां रोमन में हैं। आप देवनागरी में ही क्यों नहीं लिखती। लगता है कि आप हिन्दी फीड एग्रगेटर के साथ पंजीकृत नहीं हैं यदि यह सच है तो उनके साथ अपने चिट्ठे को अवश्य पंजीकृत करा लें। बहुत से लोग आपके लेखों का आनन्द ले पायेंगे। हिन्दी फीड एग्रगेटर की सूची यहां है।

कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। यह न केवल मेरी उम्र के लोगों को तंग करता है पर लोगों को टिप्पणी करने से भी हतोत्साहित करता है।