आप तो जाए बसे हो मथुरा
ध्यान कुछ हमरा भी धरो
आकुल व्याकुल फिर रही हैं
कोई तो सन्देश अपना दो
हवा के झोंके में भी आहट तुम्हारी लगती हैं
फूल और पतियों में भी तुम्ही को ढूँढती फिर रही हैं
अब तो आ जाओ ध्यान कुछ हमरा भी करो
रोज़ तुम्हे देखने की तुमसे बात करने की आदत हैं हमारी
अब यू मुख ना हमसे मोड़ो
काहे जाए बसे हो मथुरा
अपनी बृज गोपीन का ध्यान तो धरो
ध्यान कुछ हमरा भी धरो
आकुल व्याकुल फिर रही हैं
कोई तो सन्देश अपना दो
हवा के झोंके में भी आहट तुम्हारी लगती हैं
फूल और पतियों में भी तुम्ही को ढूँढती फिर रही हैं
अब तो आ जाओ ध्यान कुछ हमरा भी करो
रोज़ तुम्हे देखने की तुमसे बात करने की आदत हैं हमारी
अब यू मुख ना हमसे मोड़ो
काहे जाए बसे हो मथुरा
अपनी बृज गोपीन का ध्यान तो धरो
No comments:
Post a Comment