Wednesday 21 April, 2010



कहा जाए छिपे बैठे हो कान्हा
कहा चले गए हो के सामने आते ही नही
सामने होकर भी दर्शन ना देते हो
इतने करीब हो पर दूरी इतनी के दिखाई भी ना पड़ते हो
कहा जाए छिपे बैठे हो?
इन नैनों की प्यास का भी कुछ करो ख्याल
कुछ तो करिये हमारा ख्याल
अपनी कृपा की इक नजर ही कर दो
मेरा हाथ पकड़ शरण में अपनी रख लो

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