Tuesday 26 January, 2010
ऐसा दो मुझको वरदान
हे कान्हा,हे मेरे माधव,
करुणा के पुंज,करुणा सागर
ऐसा दो मुझको वरदान
के कभी भी तोहे बिसरू न
हर समय हर पल मेरी सांसें
करती रहे सिमरन तेरा
रहे मुझको बस ध्यान तेरा
इस संसार चक्र में
चाहे जितने चक्कर तुम लगवाना
बस इक करम मुझ पर करना
अपनी यादो का न साथ छुड़वाना
मेरे मन से इक पल के लिए भी
तुम श्याम इधर उधर न जाना
बस श्याम तुम रहना साथ मेरे
करवाते रहना अपना एहसास
ऐसा दो मुझको वरदान
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment