बरसी बूंदे बरखा की,बूंदों में बरसा बृजकुंवर का प्यार
आप आये न आये मोहन, दे दिया मेको अपना एहसास
घनन घनन मेघा बरसे,श्याम घटा चड आई
श्याम घनो में घनश्याम नजर मोको आये
बंसी बजाते हुए श्याम मोहे अपना एहसास दिलाये
इस विरह की अग्नि में, यह बूंदे मोहे और जलाये
घनश्याम इन बादलो के संग, इन बूंदों के संग
बोलो न श्याम तुम क्यों न चले आये
आये भी तो क्यों छिप बैठे रहते हो श्याम
मंद मंद मुस्काते हो,हिये बहुत तडपाते हो
दिल की व्यथा कही नही जाती.............
क्यों श्याम इतना सताते हो?.............
Wednesday 19 May, 2010
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