"प्रियतम को पाटिया लिखू जो कोए होय विदेश
तन में, मन में, प्राण में, वाको कहा सन्देश"
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा
तेरे नाम से धन्य हुआ अंतर मन मेरा
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा
तेरे नाम की मस्ती हरदम छाए
देखू हरदम रूप छवि तोरी
नैनों में मेरे तू बस जाए
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा
मुझमे भी तो तुम्ही समाए
कैसी हैं फिर यह दूरी
क्यों तेरी याद सताये
क्यों रोम रोम दर्शन को तेरे, मेरा तड़प जाए
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा
तन में, मन में, प्राण में, वाको कहा सन्देश"
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा
तेरे नाम से धन्य हुआ अंतर मन मेरा
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा
तेरे नाम की मस्ती हरदम छाए
देखू हरदम रूप छवि तोरी
नैनों में मेरे तू बस जाए
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा
मुझमे भी तो तुम्ही समाए
कैसी हैं फिर यह दूरी
क्यों तेरी याद सताये
क्यों रोम रोम दर्शन को तेरे, मेरा तड़प जाए
ओह मेरे गिरधर गोपाला
मैं तेरी तू मेरा
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