देख छवि तेरी लुट गयी मैं बनवारी
तेरे रूप ने ऐसा मुझको मोहा
मोहन ही मोहन मैं गाने लगी
मोहन से लग गयी मेरी यारी
मोहन से ही हो बात हमारी
यही अर्ज हर दम मोहन से चाहने लगी
मैं मोहन संग जब भी करू कोई बात
मोहन भी मुझे देता हैं जवाब
मगर मोहन तुम क्यों सामने आते नही
आत्मा की आवाज बन
अन्तर मन में समाए जाते हो
मगर इन आँखों का पर्दा काहे न हटाते हो
क्यों श्याम दरस न दिखाते हो
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