Thursday 9 April, 2009


नैना मूँद पुकारू तुझे
बंद नैनो से निहारु तुझे
अपने ही उर में अक्स तेरा बनाऊ
तेरी चोखट पे आ तेरा दरस चाहू
अपने उर में छवी इक बना रखी हैं मोहन
सांवली सूरत प्यारी सी मुस्कान हैं
टेडा सा मुकुट बाँकी सी चाल हैं
नैना बड़े विशाल हैं
गले में डारी तुने वैजन्ती माल हैं
गालन पे लटक रहे तेरे घुंगराले बाल हैं
अधरं पे सज रही प्यारी मुरली की तान हैं
कानो में दारे कुण्डल प्यारे
हाथो में सोहे कंगन न्यारे
सीस मोर मुकुट विराजे
चरणों में तेरे नुपुर साजे
कांधे काली कमली सोहे
ललाट पे तिलक मन मोहे
नैना मूँद पुकारू तुझे
बंद नैनो से निहारु तुझे

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