Wednesday 15 April, 2009

क्या लिखू में मोहन


क्या लिखू मैं मोहन
कुछ जीत लिखू या हार लिखू
या दिल का अपने हाल लिखू
क्या लिखू मैं मोहन
जो तुमको भाए
जिसे पड़कर तुम चले आओ
फिर प्यारी मुरली की तान सुनाओ
इस मुरली ने दीवाना बना दिया
अपनी तानो में मुझे नाचना सिखा दिया
तेरी मधुर मधुर मुस्कान ने
पागल हमे बना दिया
हम तो पहले ही तेरे थे
इसने तो रहा सहा भी लुटा दिया
तेरी गहरी आँखों ने
हमे तुझमे डूब जाना सिखा दिया
तेरी ही मस्ती में मस्त बना दिया
क्या लिखू मैं मोहन
दिन लिखू या रात लिखू
या मधुबन में रचाई तेरी रास लिखू
जिस रास ने पागल हमे बना दिया
सर्वस्व हमारा लुटा दिया
हमे तेरा बना दिया
गोपियों का दिल चैन जिसने चुरा लिया
क्या लिखू में मोहन
उन वृन्दावन की गलियन की बात
या नंदगाँव की निराली शान
या फिर प्यारा कालिंदी का तट
या बहती यमुना का स्वर
या लिखू मैं बरसाने का हाल
जहा से निकलती थी
ब्रज की गोपियों की टोली एक साथ
जिसमें होती थी एक राधिका गोरी
जो मोहन प्रिय मोहन मोहिनी थी
क्या लिखू मैं मोहन
कुछ याद लिखू
या यादों में आने वाली
कोई बात लिखू
किस से तुम रीझोगे मोहन
क्या तेरे मन को भायेगा
जिसे सुनकर तू
हमारे पास चला आएगा
या हमे अपने पास बुलाएगा

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