Sunday 12 April, 2009
कृष्ण तेरी यादों में मैं कुछ पागल सी हो गई हूँ
कृष्णा तेरी यादों में मैं
कुछ पागल सी हो गयी हूँ
खुद ही इक पल हँसती हूँ
और दूजे ही पल रो देती हूँ
जैसे ही यह तेरी यादों का तूफ़ान
गहरा जाता हैं
सुध बुध अपनी गवा बैठती हूँ
तुमसे बात करने को मचल जाती हूँ
तेरे दरस पाने को इधर उधर भागती हूँ
जब तू श्याम दरस दिखता नहीं
तो तेरी तस्वीरो से बीतें करती हूँ
तुझे तेरी ही शवि में निहारती हूँ
तुझे ही याद करती हूँ
मगर यह मेरी तुछ सोच
इसमें कहा तू समा पाता हैं
इसीलिए मेरा दिल
जो तेरा था और तेरा ही हैं
तुम्हे ही अपना हाल-ए-बयाँ कर जाता हैं
कृष्णा तेरी यादों में मैं
कुछ पागल सी हो गयी हूँ
सुध बुध अपनी खो गयी हूँ
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