Friday 23 October, 2009

कबसे इस मन को सजाये बैठे हैं मोहन



कबसे इस मन को सजाये बैठे हैं मोहन
तेरे इंतज़ार में पलकें बिछाये बैठे हैं मोहन
तेरे दीदार की तमन्ना लिए
नाजाने कबसे तेरे आने की आस लगाये हैं मोहन
जाने तुम कब आओगे
कब तुम इस पगली को जी भर दरस दिखोगे
जाने तुम कब आओगे
मोहन अब करो न देर
ऐसा न हो के कहीं ज्यादा ही हो जाए देर
अब तो सुन लो करुण पुकार
मेरी न सही भोली भाली गईया तुम्हे पुकार रही
वृक्ष,लताएं,फल,फूल,जल की धार
सब कर रही हैं तुम्हारा गुणगान
यमुना जी भी कर रही पुकार हैं
आ जाओ ना गिरधारी
तुम बिन सूने वन उपवन
सूना संसार हैं
आ जाओ सांवरिया

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