Sunday 4 October, 2009
raasotsav
शरद पूनम की रात की ,
बधाई हो महारास की
प्रकृति ने अपनी छठा बिखराई
मोहन के रसीले होंठो पर मुस्कनिया छाई
चाँद ने चांदनी चहु और बिखराई
गगन पे चाँद खडा मुस्कुराये
कान्हा मेरो यमुना के तीर महारास रचाए
अम्बर पे छठा अलोकिक छाई
मोहन की मोहिनी महारास को आई
कमल नैनों वाली राधे अलबेली
करोडो चांदो को लजित कर रही
कृष्णा के संग गोप गोपिया महारास कर रही
चलो छोड़ सब काज
भूल जाओ आज सब लोक लाज
कृष्णा बंसी मधुर बजावे
बंसी की धुन पर सारा संसार थिरक थिरक जावे
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