Thursday 5 November, 2009

क्या लिखू क्या न लिखू



क्या लिखू क्या न लिखू
कैसे लिखू क्यों लिखू
इसी दुविधा में हूँ श्याम
तुम तो जानते ही हो न
मेरे हिये की हर बात
फिर क्यों लिखू
क्यों कहू कुछ भी तुम्हे
तुम्हे सबकुछ तो मालूम हैं
क्या छिपा हैं तुमसे
जो तुम्हे कुछ बताने का साहस करू
फिर भी नजाने क्यों
मेरे लबो पे आ जाती एक ही बात हैं
साँवरिया आ जाओ,अब न तड़पाओ
कहती तो हूँ यह पर तुम जानते हो
इस तड़पन के लिए भी कितना तडपती हूँ
नही चाहती मैं इस तड़पन से मुख मोड़ना
तेरी याद में जो मजा हैं
नही चाहती में वो छोड़ना
शायद इसीलिए तू
मेरी नजरो के सामने होकर भी मोहे तड़पाता हैं
सामने होकर भी नजरो को वो नजाकत न देता हैं
तू सामने हैं पर तेरे दीदार को तरसते हैं
क्या कहें अब इस तड़पन की बात
आनन्द की कोई सीमा नही तेरे प्रेम में मेरे घनश्याम
और मैं कुछ न जानने समझने वाली अनजान
कैसे पाऊ तेरा दीदार ,
तुम तो प्रेम समुन्द्र हो
मैं इक सूखा हुआ कतरा
कैसे गुण गाऊ तेरे घनश्याम
क्या लिखू क्या न लिखू
इसी दुविधा में हु श्याम

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