मनमोहन प्यारे क्यों अखिया मीचे बैठा हैं अब तो देख इक नजर इधर ओह कन्हाई कब से खड़ी हू आकर तेरे द्वार लगी हैं तेरे मिलन की आस रो रो के तुझको रिझाऊ तेरे लिए मुस्कुराऊ,तुझे गा गा कर रिझाऊ अब तो खोल दे बंद किवाड़ नही रहा जाता अब बिन तेरा नाम गाये अब तो कर दे कृपा की इक नजर ओह श्याम
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