Tuesday 9 February, 2010


क्या कहु तुझे मोहन यह समझ ही नही आता हैं
कुछ लिखा फिर मिटाया,मिटा कर फिर लिखा
लिख कर फिर मिटाया,मगर कुछ समझ नही आया
कहू मैं तोसे अपनी बात,या पूछू मैं तेरा हाल
करू मैं तेरा गुणगान,या कहू कायनात की कोई बात
तुम ही बताओ तुम से कही कुछ छुपा हैं मेरी सरकार
क्या कहू तुझे मनमोहन यह समझ ही नही आता हैं
मेरे दिल की हर इक तार जुडी तुमसे ही घनश्याम
प्यासे नयना राह तके हैं,दर्शन को तेरे भक्त खड़े हैं
सुन लो मेरी भी इक बात,माना तुमको अपना सखा हैं
अपनी सखी को सिखा जाओ आके करना करुणपुकार
श्याम मेरे आ जाओ श्याम मेरे आ जाओ!

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