Sunday 21 February, 2010

ओह मेरे कान्हा!
क्या कहू क्या न कहू?
क्या करू क्या न करू?
क्या सही क्या गलत?
क्या अछा क्या बुरा?
कुछ भी समझ न पाती हू
बस मैं तो तेरी दीवानी
तेरी ही रजा से चलना चाहती हू
जैसे भी तेरी हो इच्छा
वैसा ही तू मुझसे करवाना
मुझे श्यामसुन्दर अपनी दीवानी बनाना
मुझे बना तू कठपुतली अपने हाथो की
जैसी हो मर्जी वैसे तू नचाना
डोर थामना मेरी अपने हाथो
जिस विध चाहो वैसे नचाना
बस मोहे अपना बनाना अपने दर्शन करवाना
श्याम जल्दी आ जाना

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