Tuesday 4 August, 2009

हे भकतवत्सल!हे कृष्ण मुरार!



हे भकतवत्सल! हे मेरे कृष्णा मुरार!
सुना हैं मैंने के करते हो तुम
सबके मन की पूरण आस
जो जिस रूप में तुमको ध्याये
चाहे जिस भी रूप मैं तुम्हे
तुम देते हो दरस उसे
उस रूप का करवाते हो दर्शन
फिर काहे मेरी बारी
तूने इतनी देर लगाई
जनम जनम की प्यासी को
क्यों तू इतना तडपाये
काहे न श्याम तू अब तक आये
हे मोहन मुरार!
हर जनम में तुम मोहे अपना बनाओ
मेरे हृदय में अपने लिए नेह जगाओ
मोहे हर पल अपने दरस करवाओ
हे कृष्णा मेरे आ जाओ

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