Thursday 11 June, 2009

जाने क्यों?


मोहन मेरे क्यों इतना सताते हो
क्यों हमे इतना तड़पाते हो
क्यों इन कजरारी आँखों से दीवाना बनाते हो
क्यों इस मधुर मुस्कान से
तुम इतना माधुर्य बरसाते हो
क्यों पागल हमे बनाते हो
क्यों इन अलोकिक अधरों से
तुम अलोकिक बांसुरी की तान सुनाते हो
ग्वाल बालों संग कभी माखन चुराते हो
तो कभी अपनी लीला अद्भुत दिखाते हो
हमसे क्या हुई भूल
जो तू हमे पराया बनाते हो
ना तो सामने आते हो
ना ही हमसे दूर जाते हो
जाने क्यों तुम इतना सताते हो
सामने होकर भी क्यों तुम सामने ना आते हो
मगर मोहन चाहे तुम जब भी सामने आना
बस तुम कभी मुझसे दूर ना जाना

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