Tuesday 30 June, 2009
ऋतू की पहली बरसात का एहसास
कृष्णा प्यारे दिल-ओ-जान हमारे
दिल लूट हो हमारा ले जाते
इसीलिए तो हम चितचोर हैं तुम्हे बुलाते
ऋतु की पहली पहली बरसात में
बूँदों की बोछार में,मौसम के हर मिजाज में
मुझे तेरा ही आता ख्याल हैं
ऐसा लगता हैं जैसे
तू इसमें कही दे रहा एहसास हैं
फूलों की हर पत्ती में,महकती खुशबू में
मुझको तेरा ही एहसास आता हैं
मुझे हर धड़कन के साथ
जाने क्यों तू याद आता हैं
क्या कहू कान्हा तेरा बंसी बजाना
तेरे नन्हे हाथो से माखन चुराना
बरबस यूँ ही माखन से मुख लपटाना
कोमल पाँव में पाजेब बाँध छनकाना
रसीले अधरन से यूँ ही मुस्काना
हाय रे मोहन !
तेरी हर अदा ने मुझे दीवाना तेरा बनाया
तू चाहे माने या ना माने
मैंने तो तुझे ही अपना बनाया
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