Saturday 4 July, 2009
क्या अपराध हमारा?
मोहन क्या अपराध हमारा जो इतना तुम सताते हो
अपनी इक झलक के लिए जन्मो से हमे तड़पाते हो
बंसी की मधुर धुन से रागिनियों को बजाते हो
अपनी बंसी की धुन बजा हमे पागल बनाते हो
बंसी को भी तुम अधरामृत पिलाते हो
उसे होंठो से छूकर उसे धन्य बनाते हो
और हमको तुम चरणों से भी क्यों दूर बिठाते हो
हमारा दिल छीन कर क्यों यूँ मुस्कराते हो
हमारे सजल नेत्रों से अश्रु जल गिराते हो
मोहन मेरे मन में समा जाओ
मोहे ना इतना सताओ
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment