Thursday 23 July, 2009

कसूरवार हु कान्हा



माना के कान्हा कसूरवार हूँ मैं
गुनाहगार भी तो हु मेरे कान्हा
पता नही अपराध कितने किये होंगे हमने
फिर इस अपराधी को क्यों तू दरस दिखायेगा
क्यों तू इन सजल नेत्रों की पीडा हरेगा
क्यों इनकी दर्शन प्यास बुझायेगा
लाखो किये होंगे अपराध हमने
लाखो ही गुनाह हमसे हुए होंगे
फिर भी तुमसे विनती हैं ठाकुर
गुनाहों को मेरे भुलाना
करना क्षमा अपराधो को मेरे
मोहे अपने दरस दिखाना
मोहे चरणों से अपने लगाना
मेरे मन मंदिर में सदा सदा के लिए बस जाना

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