Thursday 16 July, 2009

कैसे कहू मैं तुमसे मोहन!



कैसे कहू मै तुमसे मोहन
के कितना तुम याद आते हो
अब यह भी कोई बताने की बात हैं
तुम हर पल हमारी यादों में बसे रहते हो
क्या तुम्हे अब मै यह बताऊ
तुम मेरी दिल की हर धड़कन के साथ याद आते हो
मेरी हर धड़कन मुझे तेरा एहसास करवाती हैं
अब तुम्हे कैसे बताऊ मोहन
कितनी प्यारी लगती हैं तुम्हारी बातें
मन तो करता हैं हर बात में तेरी बात हो
हर साज में तेरी बांसुरी की तान हो
काश!के मोहन तेरी मुरली होती में
तू अपने कर कमलो से उठाता
और होंठो से अपने लगाता
मगर मालूम हैं हमे मोहन
हम इस काबिल नही
मुरली तो दूर की बात
हम तो तेरे कदमो की धूल के काबिल भी नहीं
पता नही मोहन किस हक से तुम्हे बुलाती रहती हू
हर पल तुम्हे पुकारती रहती हूँ
इतना तो मानती हूँ
के रिश्ता तो ज़रूर हैं कोई तेरा मेरा
यूँ ही नही होता होता कोई दीवाना किसी का

No comments: