Monday 20 July, 2009

बरसे बदरा सावन के



बरसे बदरा सावन के पर तुम न आये मनमोहन
बूँद बूँद नभ से बिंदु भी छलक आये
हमे तेरी याद सताये,
रह रह कर यह स्मरण तुम्हारा करवाए
बरसे बदरा सावन के पर तुम न आये मनमोहन
उमड़ घुमड़ कर बादल आये
गरज गरज कर छोर मचाये
नाम कान्हा तेरा पुकारें तुम्हे बुलाये
बरसे बदरा सावन के पर तुम न आये मनमोहन
बागों में हरियाली छाई
हर कुसुम हर कली मुस्काई
खुश होकर पुकारें तेरा नाम
बुलाएं तुम्हे यह बारम्बार
बरसे बदरा सावन के पर तुम न आये मनमोहन
कोयल ने कु कु का राग सुनाया
पपीहे ने पिहू पिहू गया
पर मेरा पिव मेरा श्याम सलोना
काहे न अब तक आया
बरसे बदरा सावन के पर तुम न आये मनमोहन
डाल डाल पर झूले पड़े हैं
सब सखियाँ झोंटा लेवे
मुझे दोगे झोंटा कबरे मुरारी
बरसे बदरा सावन के पर तुम न आये मनमोहन
इतना तो बतला दीजे
कब होंगे दरस मुरारी
कब आओगे मेरे बनवारी

No comments: